Month: मार्च 2019

मेरे पिता को स्मरण करना

जब मैं अपने पिता को याद करता हूँ, तो मैंने उन्हें सबसे अच्छी रीति से हथौड़ा चलाते, बागबानी करते या सीढ़ियों के नीचे अव्यवस्थित कमरे में आकर्षक औजारों और यंत्रों के साथ देखता हूँ। उनके हाथ हमेशा किसी न किसी कार्य को पूरा करने में लगे होते थे-कुछ न कुछ बनाना (कोई गैरेज या एक छत या एक चिड़िया के लिए घर), कईबार ताले ठीक करना और कईबार आभूषण बनाना या शीशे की कलाकृति करना।   

मेरे पिता को स्मरण करना मुझे मेरे स्वर्गीय पिता और सृष्टिकर्ता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, जो सर्वदा से ही कार्य करने में व्यस्त रहे हैं। आदि में, “[परमेश्वर] ने पृथ्वी की नींव डाली. . .उस पर किसने सूत खींचा . . . जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्‍वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे” (अय्यूब 38:4–7)। जो कुछ भी उन्होंने बनाया वह एक कला, एक सर्वोत्तम कृति थी। उन्होंने एक विस्मयकारी सुन्दर संसार की सृष्टि की और इसे “बहुत अच्छा” कहा (उत्पत्ति 1:31)।

उसमें आप और मैं भी शामिल हैं। परमेश्वर ने हमें भयानक और अद्भुत रीति से रचा है (भजन संहिता 139:13–16); और उसने हमें एक लक्ष्य और कार्य करने का एक लक्ष्य प्रदान किया है, जिसमें इस पृथ्वी पर अधिकार रखना और इसके जीव-जन्तुओं की देखभाल करना शामिल है (उत्पत्ति 1:26–28; 2:15) । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या काम करते हैं-हमारे काम में या हमारे आराम में-परमेश्वर हमें सामर्थ प्रदान करता है, जिसकी हमें पूरे दिल के साथ उसके लिए कार्य करने के लिए आवश्यक होती है। जो कुछ भी हम करें, परमेश्वर करे कि वह उन्हें प्रसन्न करने के लिए हो।

रुई का रोआं और दूसरी चीज़ें

विन्नी द पू का एक प्रसिद्ध कथन है “जिस व्यक्ति से आप बात कर रहे हैं, यदि वह सुनता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा हो तो धैर्यवान बने रहें। यह भी हो सकता है कि उसके कान में रुई का एक रोआं हो। 

वर्षों से मैंने सीखा है कि विन्नी कुछ कर रहा है।  जब कोई आपको नहीं सुनता, यद्यपि आपकी सलाह को सुनना उनके लिए हितकर होगा, तो हो सकता है कि उनकी चुप्पी उनके कान में एक रुई के रोएँ से अधिक और कुछ न हो। या हो सकता है कि कोई और बाधा हो। कुछ लोगों के (लिए) सुनना बहुत ही कठिन होता है, क्योंकि वे अन्दर से टूटे हुए और निरुत्साहित होते हैं।  

मूसा ने कहा कि उसने इस्राएल के लोगों से बात की परन्तु उन्होंने नहीं सुना क्योंकि उनकी आत्माएँ दुखी और उनका जीवन कठिन था (निर्गमन 6:9) । इब्रानी लेख में निरुत्साह शब्द का शब्दशः अर्थ “साँस का फूलना” होता है, जो मिस्र में उनके दासत्व का परिणाम था। उस परिस्थिति में, इस्राएल का मूसा के समझ और दया के निर्देशों को सुनने के लिए इच्छा न रखना, क्या निन्दा करने के योग्य नहीं है।

जब दूसरे लोग हमारी बात को नहीं सुनते, तब हमें क्या करना चाहिए? विन्नी द पू के शब्द बुद्धि से परिपूर्ण हैं: “धैर्यवान रहो। परमेश्वर कहते हैं, “प्रेम धैर्यवान है, प्रेम दयालु है” (1 कुरिन्थियों 13:4); वह प्रतीक्षा करने की इच्छा रखता है। उसका उस व्यक्ति में काम अभी समाप्त नहीं हुआ है। वह उनके दुःख में, हमारे प्रेम, हमारी प्रार्थनाओं के द्वारा उनमें काम कर रहा है। शायद, अपने समय में, वह सुनने के लिए उनके कानों को खोल देगा। धैर्यवान बने रहें।

आशीष आ रही है

मेरी एक सहेली और मैं उसके नाती-पोतों के साथ घूमने के लिए गए। स्टॉलर(बच्चे की गाड़ी) को धकेलते हुए, उसने कहा कि उसके कदम बेकार हो रहे थे-क्योंकि वे उनकी गतिविधि पर नज़र रखने वाले यंत्र के द्वारा गिने नहीं जा रहे थे, जो उन्होंने अपनी कलाई पर पहना हुआ था, ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि वह अपने हाथ को हिला नहीं रही थी। मैंने उसे याद दिलाया कि वे कदम अब भी उसकी शारीरिक सेहत को सुधार रहे थे। “हाँ,” वह हँसी। “परन्तु मुझे सच में वह सोने का सितारा चाहिए था!” 

मैं समझ सकती हूँ वह कैसा अनुभव कर रही थी! तुरन्त मिले परिणामों के बिना कोई काम करना दिल को दुखाने वाला होता हैI परन्तु प्रतिफल हमेशा तुरन्त नहीं मिलते या तुरन्त ही दिखाई नहीं देते।

जब ऐसा होता है, तो यह महसूस करना सरल होता है कि जो भली बातें हम करते हैं, वे अनुपयोगी हैं, चाहे वह एक मित्र की सहायता करना या किसी अजनबी पर दया दिखाना ही हो। पौलुस ने गलतिया की कलीसिया को समझाया कि “मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा”(गलातियों 6:7)। परन्तु आवश्यक है कि हम “हम भले काम करने में साहस न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे” (पद 9)। भला करना उद्धार प्राप्त करने का मार्ग नहीं है, और न ही यह पद बताता है कि जो कटनी हम करेंगे वह अभी होगी या स्वर्ग में होगी, परन्तु हम इस बात का निश्चय कर सकते हैं कि “वह एक आशीष की कटनी होगी” (6:9)।

भला कार्य करना कठिन होता है, विशेष रूप से तब जब हम नहीं देखते या जानते कि वह “कटनी” क्या होगी। परन्तु मेरी उस सहेली की तरह, जिसे उस दिन घूमने से शारीरिक लाभ तो प्राप्त हो गया था, तो भला करना जारी रखना उत्तम है क्योंकि आशीष आ रही है!

आत्मा में गाना

आरम्भिक बीसवीं शताब्दी के वेल्श पुनर्जागरण के दौरान बाइबल के शिक्षक और लेखक जी. कैम्पबैल मॉर्गन ने उसका उल्लेख किया जो उन्होंने देखा था। उन्होंने विश्वास किया कि “पवित्र भजनों की लहरों” पर परमेश्वर के पवित्र आत्मा की उपस्थिति थी। मॉर्गन ने लिखा कि उन्होंने सभाओं में संगीत के एकत्र करने वाले प्रभाव को देखा है, जिसने स्वेच्छा से प्रार्थना करने, अंगीकार करने और स्वैच्छिक गायन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यदि कोई भावनाओं में बह गया और बहुत देर तक प्रार्थना की या उस तरह से बात की जो दूसरों की समझ में नहीं आती है, तो कोई धीमे से गाना शुरू कर देता था। दूसरे लोग धीमे से उसके साथ शामिल हो जाते थे, उस गीत के स्वर तब तक बढ़ते जाते थे, जब तक वे दूसरी अन्य समस्त आवाजों को दबा न दें। 

जिस गीत के नया किए जाने का उल्लेख मॉर्गन करते हैं, उसकी पवित्रशास्त्र में एक कहानी है, जिसमें संगीत एक मुख्य भूमिका निभाता है। संगीत का प्रयोग विजय का आनन्द मनाने (निर्गमन 15:1–21); मन्दिर के आराधनामय समर्पण में (2 इतिहास 5:12–14); और सैन्य रणनीति बनाने के एक हिस्से के लिए किया जाता था (20:21–23)। बाइबल के मध्य में हम एक पुस्तक को पाते हैं (भजन संहिता 1–150)। और पौलुस के इफिसियों के लिए नया नियम के पत्र में हम आत्मा में जीवन के उल्लेख को पढ़ते हैं : “और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो” (इफिसियों 5:19)।

इसके विपरीत, आराधना में, सम्पूर्ण जीवन में, हमारे विश्वास का संगीत हमारी आवाज़ को खोजने में सहायता कर सकता है। पुरानी और नई धुनों से हम बार-बार नए किए जाते हैं, न तो बल से और न ही शक्ति से परन्तु हमारे परमेश्वर के आत्मा और गीतों के द्वारा।

बादलों के द्वारा अस्पष्ट

नवम्बर 2016 में एक विचित्र चन्द्रमा दिखाई दिया था-अपनी कक्षा में चन्द्रमा साठ साल में पृथ्वी के सबसे निकटम बिन्दू पर पहुँच गया था और यह पहले से बड़ा और चमकदार दिखाई दिया। परन्तु मेरे लिए उस दिन आकाश स्लेटी रंग से ढका हुआ था। यद्यपि मैंने इस चमत्कार की दूसरे स्थानों पर मेरे मित्रों के द्वारा ली गई तस्वीरों को देखा और जब मैंने ऊपर देखा तो मुझे उस समय भरोसा करना था कि वह अद्भुत चन्द्रमा उन बादलों के पीछे छिप कर इन्तजार कर रहा था।

प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया से कठिनाइयों में अनदेखे, परन्तु सर्वदा तक बने रहने वाले, पर विश्वास करने के लिए आग्रह किया। उसने कहा उनकी “क्षणिक कठिनाइयाँ” किस प्रकार “एक अनन्त महिमा” को प्राप्त कर सकती हैं (2 कुरिन्थियों 4:17) । इसलिए उन्होंने अपनी आँखें “उस पर नहीं लगाई, जो दिखाई दे रहा था, अपितु उस पर जो दिखाई नहीं दे रहा था,” क्योंकि जो दिखाई नहीं दे रहा है, वह अनन्त है, (पद 18) । पौलुस ललायित था कि कुरिन्थुस के लोग विश्वास में बढ़ें और यद्यपि उन्होंने दुःख उठाया, फिर भी वे परमेश्वर पर भरोसा रखें। हो सकता है वे उन्हें देखने के योग्य न हों, परन्तु वे विशवास कर सकते थे कि वह उन्हें दिन-ब-दिन नया कर रहे थे (पद 16)।   

मैंने विचार किया कि परमेश्वर किस प्रकार अनदेखा परन्तु अनन्त है, जब मैंने उस दिन बादलों में से देखा, तो मैं इस बात को जानती थी कि वह चन्द्रमा छिपा हुआ तो है, परन्तु वह वहीं है। और मैंने विचार किया कि जब अगली बार यह विश्वास करने की परीक्षा में हूँगी कि परमेश्वर मुझ से दूर है, तब मैं अपनी आँखें उस पर लगाऊँगी जो अनदेखा है।